The rules and recommended guidelines for Temple Managers and Bhagavata Katha Speakers for conducting Bhagavat Katha in ISKCON, India, as approved by IIAC (ISKCON India Advisory Committee) are listed as follows:
Rules and recommended guidelines for Managers :
Rules :
1. Invite only ISKCON authorized Bhagavata katha speaker.
2. All financial transaction including dakshina to Speaker to be monitored and accounted by ISKCON
temple organizing it.
3. All publicity materials should be of ISKCON standards.
4. If any person or an organization want to organize bhagavata Katha still the official invitation letter should be from the temple manager and he should monitor all financial dealings.
5. The temple manager/ Zonal secretary has the right to invite or not to invite a particular speaker.
6. Any discrepancy found in the Bhagavata Katha speaker in following the rules set for him, should be immediately reported to DC chairman. DC Chairman, after investigation, should report to IIAC Bhagavata katha committee.
7. Bhagavata Katha speaker is guest speaker only and all the managerial responsibility is on the local temple management. So, temple management/ Zonal secretary reserves the right to cancel the Katha any time, if they find the Katha speaker interference in managing Katha program.
8. No Katha speaker can independently organize Katha, it should always be done under the management of an ISKCON authority. If the katha speaker is himself an ISKCON authority, then there should a senior ISKCON authority who takes responsibility of Katha organization and Management.
Recommended Guidelines :
1. Invite only those speakers whoever the temple manager feels would be beneficial for their temple
and their zone.
2. Before invitation make it clear to the katha speaker that they should submit all the dakshina to
temple accounts and any financial consideration should be discussed before hand. Best is to not
invite anyone who has a demand for money.
3. It’s best practice to host the speaker in Temple premises and monitor his morning program. Better
not invite a speaker who has his own choice of stay and no proper sadhana. House invites during his
stay also to be under the supervision of the temple manager.
4. Have `Jaya Radha Madhava’ kirtans in the beginning and kirtans in the end. In the middle if the
Speaker wishes, there can be Hare Krishna kirtans and Vaishnava bhajans. There should be no
background music during the lecture.
5. Its best that a temple Representative be the MC of Katha and only one donation stall operated by
temple.
6. Also the organizer can ensure there will be a Srila Prabhupada’s book table during the event for
reaching Prabhupada’s books to the attendees.
Rules and recommended guidelines for Bhagavat Katha Speakers :
Rules :
1. First get certified in writing (details in powerpoint on the Training and certification program), as an
authorized ISKCON Bhagavat Katha speaker
2. Katha can be done in a place only on invitation by Local or Zonal authority.
3. No monetary or commercial precondition to be laid for speaking Bhagavatam.

4. The speakers of the kathā should ensure that they speak pure vaiṣṇava philosophy aligned to the gauḍīya-vaiṣṇava siddhāntas. They can quote commentaries by previous ācāryas only if they are sure that they are rendering a faithful translation of the ācārya’s words. He must be second initiated, Bhakti sastri holder, philosophically sound, in good standing, must have visible sadhana to set a good example, must be rendering tangible and effective service within an ISKCON temple(s) for last seven years from the time of chanting minimum 16 rounds of japa daily; must be loyal to Srila Prabhupada instructions, GBC Body, to representatives and following ISKCON’s line of spiritual and managerial authority; must understand and practically apply spiritual knowledge according to the teachings of Srila Prabhupada; must be trustworthy with clear history of personal conduct; must know how to deal appropriately with children and women; must be inclined to lead and train others; must be willing and able to serve co-operatively with others in a humble mood; must be enthusiastic to preach appropriately.
5. He should be connected to an authorised ISKCON Temple and not doing anything independent of the local temple management or Zonal secretary.
Recommended guidelines :
1. Maintain appropriate simple dress code. Preferably doti, kurta, anga-vastra. White for grihastas and saffron for brahmachari and sanyasis.
2. Stay in the place arranged by the host temple and attend morning program.
3. For those who do Bhagavata katha as a fulltime service, then the best policy is to have shaved head, tilak, kanthimala, shika and no turban.
4. Maintain a proper consciousness that Katha is to attract conditioned souls to krishna not to ones own self. Always introduce Srila prabhupada to audience as a founder acharya and local authorities as the siksha guru.
5. Maintain simple lifestyle befitting your ashram and stature.
6. Disclosure of assets and income to local authority, if you have a private business and trust.

ISKCON भारत में भागवत कथा आयोजन करने हेतु मंदिर प्रबंधक और भागवत कथा वक्ताओं के लिए IIAC (ISKCON India Advisory Committee) द्वारा निर्धारित नियम और मार्गदर्शिका नीचे दिये गए हैं :

मंदिर प्रबन्धक के लिए नियम और मार्गदर्शिका

नियम :

1. केवल ISKCON अधिकृत भागवत कथा वक्ताओं को आमन्त्रित करे |

2. सभी वित्तीय लेनदेन, वक्ता को दी जाने वाली दक्षिणा सहित, ISKCON मंदिर के निरीक्षण में किए जाने चाहिए और लेनदेन का लेखाजोखा रखें |

3. सभी प्रचार सामग्री ISKCON के मानकों पर होने चाहिए।

4. अगर कोई व्यक्ति या संगठन भागवत कथा आयोजित करना चाहता है, तो भी मंदिर प्रबंधक को अधिकृत आमंत्रण पत्र द्वारा आमंत्रित और सभी वित्तीय लेनदेन की मॉनिटरिंग करे ।मंदिर प्रबंधक/क्षेत्रीय सचिव को किसी विशेष वक्ता को आमंत्रित करने या न करने का अधिकार है।

5. भागवत कथा वक्ता के द्वारा निर्धारित नियमों का पालन नहीं करने पर इसे तुरंत डीसी चेयरमैन को सूचित करें। जांच के बाद डीसी चेयरमैन IIAC भागवत कथा समिति को रिपोर्ट करें।

6. भागवतकथा वक्ता केवल अतिथि वक्ता होते हैं और सभी प्रबंधनिक जिम्मेदारियां स्थानीय मंदिर प्रबंधन पर होता है। इसलिए कथा वक्ता द्वारा प्रबंधन के कामों में दखल  देने पर मंदिर प्रबंधन/क्षेत्रीय सचिव को कथा कार्यक्रम स्थगित करने का अधिकार सुरक्षित है |

7. किसी भी कथावक्ता को स्वत्रंत रूप से कथा आयोज़न करने की अनुमति नहीं है | उन्हें हमेशा ISKCON प्रबंधन की क्षेत्रछाया में ही कथा करनी है | यदि कथावक्ता स्वयं प्रबंधन के हिस्सा है तो प्रबंधन की जिम्मेदारियों के लिए किसी वरिष्ठ ISKCON अधिकारी की उपस्थिति अनिवार्य हैं |

मार्गदर्शन सुझाव

1. मंदिर प्रबंधक उन्हीं वक्ता को आमंत्रित करे जिससे मंदिर और उस क्षेत्र को मदद मिले |

2. वक्ता को आमंत्रित करने से पूर्व यह स्पष्ट करे की दान की लक्ष्मी वो मंदिर को देने वाले हैं | यदि वक्ता की लक्ष्मी की मांग है तो उसपर भी आंमत्रणपूर्व चर्चा सुनिश्चित करें | कोशिश करें दक्षिणा लेने वाले वक्ताओं को आमंत्रित न किया जायें |

3. श्रेष्ठत्म, वक्ता को मंदिर परिसर में ही ठहराये और उनके साधना का निरीक्षण करे | जिनकी स्वयंरूचि वाले स्थान में ठहरने की अभिलाषा और ढंग की साधना नहीं  हो उन्हें आमंत्रित नहीं करने का प्रयास करे | वक्ता के घरबुलावे की भी निरीक्षण करे|

4. कथा के आरम्भ और अंत मेंजय राधा माधवकीर्तन करे | कथा के बीच में हरे कृष्ण कीर्तन और वैष्णव भजन भी कर सकते है | कथा के दौरान कोई भी पृष्ठ संगीत नहीं होनी चाहिए |

5. श्रेष्ठतम कथा में मंदिर के प्रतिनिधि कथा के मस हो | दान के लिए केवल एक दानमंडप( मंदिर द्वारा ) चलाया जाये |

6. प्रबंधक श्रीला प्रभुपाद की पुस्तकों का टेबल और कथा में आने वाले लोगों का इससे परिचय हो यह सुनिश्चित करे|

कथाकार के लिए नियम और मार्गदर्शिका

नियम :

1. ISKCON कथाकार के पात्र होने के लिए लिखित प्रामाणिक ( जानकारी Training and certification program वाले powerpoint में हैं ) होना आवश्यक है |

2. कथा केवल स्थानीय या क्षेत्रीय प्राधिकृति द्वारा आमंत्रित होने पर की जा सकती है।

3. भागवत कथा बोलने वालों को सुनिश्चित करना चाहिए कि वे पूरी तरह से वैष्णव दर्शन को प्रेरित करते हैं, जो गौड़ीय वैष्णव सिद्धांतों के साथ मेल खाते हैं। वे पिछले आचार्यों के टिप्पणियों का उद्धरण केवल तब दें जब वे यकीनी हों कि वे आचार्य के शब्दों का वफादार अनुभाग कर रहे हैं। उन्हें द्वितीय दीक्षा प्राप्त होनी चाहिये| भक्ति शास्त्री होना चाहिए, दर्शनिक रूप से मजबूत होना चाहिए, अच्छे स्थिति में होना चाहिए, दिन में कम से कम 16 बार के जप करने के बाद पिछले सात साल से ISKCON मंदिरों में सेवा देने की क्षमता होनी चाहिए; वे श्रीला प्रभुपाद के निर्देशों, जीबीसी बॉडी, प्रतिनिधित्व और ISKCON की आध्यात्मिक और प्रबंधनिक प्राधिकृति का पालन करते होने चाहिए; उन्हें श्रीला प्रभुपाद के शिक्षानुसार आध्यात्मिक ज्ञान को समझना चाहिए और अभिव्यक्त करना चाहिए; उन्हें व्यक्तिगत आचरण का स्पष्ट इतिहास होना चाहिए; उन्हें बच्चों और महिलाओं के साथ सही ढंग से कैसे व्यवहार करना है, इसे जानना चाहिए; उन्हें दूसरों को नेतृत्व और प्रशिक्षण देने का इरादा होना चाहिए; उन्हें दूसरों के साथ सहयोगपूर्ण भावना में औम भावना के साथ कैसे सेवा करना है, इसमें उत्सुक होना चाहिए।

4. ISKCON मंदिर से जुड़े होने चाहिए और स्थानीय मंदिर प्रबंधन या क्षेत्रीय सचिव के अनुसार कुछ भी अलग करने की अनुमति नहीं है।

मार्गदर्शन सुझाव

1. सादा पहनावा धारण करे | धोती कुर्ता अंगवस्त्र उपयुक्त है | गृहस्थों के लिए सफ़ेद और ब्रह्मचारियों/संस्यासियों के लिए भगवा |

2. आगन्तुक मंदिर द्वारा निर्धारित स्थान में रहे और ब्रह्ममुहूर्त कार्यक्रम में उपस्थित रहे |

3. वे वक्ता जो भागवत कथा को पूर्णकालिक सेवा के रूप में करते हैं, उनके लिए सिर मुंडा हुआ ,तिलक , कंठीमाला ,शिखा धारण करना उपयुक्त है | किसी प्रकार की टोपी नहीं पहने

4. सदैव याद रखें कि कथा का उद्देश्य बध्यजीवों को कृष्ण की ओर आकर्षित करना है, न कि खुद की ओर। हमेशा दर्शकों को श्रीला प्रभुपाद को एक संस्थापक आचार्य के रूप में प्रस्तुत करें और स्थानीय प्राधिकरणों को शिक्षा गुरु के रूप में प्रस्तुत करें।

5. यदि आपके पास निजी व्यवसाय और आय है, तो इसकी जानकारी स्थानीय प्राधिकरण को दें ।